क्रांति १८५७
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यह वेबसाईट इस महान राष्ट्र को सादर समर्पित।

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झांसी की रानी का ध्वज

स्वाधीन भारत की प्रथम क्रांति की 150वीं वर्षगांठ पर शहीदों को नमन
वर्तमान भारत का ध्वज
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क्रांति १८५७
 

प्रस्तावना

  रुपरेखा
  1857 से पहले का इतिहास
  मुख्य कारण
  शुरुआत
  क्रान्ति का फैलाव
  कुछ महत्तवपूर्ण तथ्य
  ब्रिटिश आफ़िसर्स
  अंग्रेजो के अत्याचार
  प्रमुख तारीखें
  असफलता के कारण
  परिणाम
  कविता, नारे, दोहे
  संदर्भ

विश्लेषण व अनुसंधान

  फ़ूट डालों और राज करो
  साम,दाम, दण्ड भेद की नीति
  ब्रिटिश समर्थक भारतीय
  षडयंत्र, रणनीतिया व योजनाए
  इतिहासकारो व विद्वानों की राय में क्रांति 1857
  1857 से संबंधित साहित्य, उपन्यास नाटक इत्यादि
  अंग्रेजों के बनाए गए अनुपयोगी कानून
  अंग्रेजों द्वारा लूट कर ले जायी गयी वस्तुए

1857 के बाद

  1857-1947 के संघर्ष की गाथा
  1857-1947 तक के क्रांतिकारी
  आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे
  1947-2007 में ब्रिटेन के साथ संबंध

वर्तमान परिपेक्ष्य

  भारत व ब्रिटेन के संबंध
  वर्तमान में ब्रिटेन के गुलाम देश
  कॉमन वेल्थ का वर्तमान में औचित्य
  2007-2057 की चुनौतियाँ
  क्रान्ति व वर्तमान भारत

वृहत्तर भारत का नक्शा

 
 
चित्र प्रर्दशनी
 
 

क्रांतिकारियों की सूची

  नाना साहब पेशवा
  तात्या टोपे
  बाबु कुंवर सिंह
  बहादुर शाह जफ़र
  मंगल पाण्डेय
  मौंलवी अहमद शाह
  अजीमुल्ला खाँ
  फ़कीरचंद जैन
  लाला हुकुमचंद जैन
  अमरचंद बांठिया
 

झवेर भाई पटेल

 

जोधा माणेक

 

बापू माणेक

 

भोजा माणेक

 

रेवा माणेक

 

रणमल माणेक

 

दीपा माणेक

 

सैयद अली

 

ठाकुर सूरजमल

 

गरबड़दास

 

मगनदास वाणिया

 

जेठा माधव

 

बापू गायकवाड़

 

निहालचंद जवेरी

 

तोरदान खान

 

उदमीराम

 

ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव

 

तिलका माँझी

 

देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह

 

नरपति सिंह

 

वीर नारायण सिंह

 

नाहर सिंह

 

सआदत खाँ

 

सुरेन्द्र साय

 

जगत सेठ राम जी दास गुड वाला

 

ठाकुर रणमतसिंह

 

रंगो बापू जी

 

भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर

 

वासुदेव बलवंत फड़कें

 

मौलवी अहमदुल्ला

 

लाल जयदयाल

 

ठाकुर कुशाल सिंह

 

लाला मटोलचन्द

 

रिचर्ड विलियम्स

 

पीर अली

 

वलीदाद खाँ

 

वारिस अली

 

अमर सिंह

 

बंसुरिया बाबा

 

गौड़ राजा शंकर शाह

 

जौधारा सिंह

 

राणा बेनी माधोसिंह

 

राजस्थान के क्रांतिकारी

 

वृन्दावन तिवारी

 

महाराणा बख्तावर सिंह

 

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

क्रांतिकारी महिलाए

  1857 की कुछ भूली बिसरी क्रांतिकारी वीरांगनाएँ
  रानी लक्ष्मी बाई
 

बेगम ह्जरत महल

 

रानी द्रोपदी बाई

 

रानी ईश्‍वरी कुमारी

 

चौहान रानी

 

अवंतिका बाई लोधो

 

महारानी तपस्विनी

 

ऊदा देवी

 

बालिका मैना

 

वीरांगना झलकारी देवी

 

तोपख़ाने की कमांडर जूही

 

पराक्रमी मुन्दर

 

रानी हिंडोरिया

 

रानी तेजबाई

 

जैतपुर की रानी

 

नर्तकी अजीजन

 

ईश्वरी पाण्डेय

 
 

तमिलनाडु

सन्दर्भ

Book: South India In 1857 War Of Independence
Author : V.D. Divekar
Publisher : Lokmany Tilak Smarak Trust
1651 Sadashiv Path
Pune 411030

पुस्तक : 1857 के स्वाधीनता संग्राम में दक्षिण भारत कायोगदान
लेखक : डा.वा.द.दिवेकर
अनुवादक : डॉ. कैलाश शंकर कुलश्रेष्ठ
भाषा : हिन्दी
प्रकाशक : भारतीय इतिहास संकलन समिति,
ब्रज प्रांत, 173, माधव भवन,
वीर सावरकर नगर, आगरा।
उत्तर प्रदेश
पिन 282010

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ स्वतंत्रता आदोलन में कई भारतीय देशभक्तों ने मातृभूमि की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। लेकिन सर्वप्रथम तमिल लोग ही थे जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ इस लड़ाई में विद्रोह के बीज बोए थे। जिनमें वीर पंडिया कट्टाबोम्मन का नाम उल्लेखनीय है। ये तमिलनाडु के एक गांव पांचालनकुरीची के शासक थे। जब ब्रिटिश सरकार ने यहां कर वसूली की योजना बनाई तो सबसे पहले इन्होंने ही विरोध किया था। इन्होंने लगान देने से इंकार कर दिया। फ़लस्वरू प इन्होंने 1798 व 1801 में कम्पनी सरकार के विरुद्ध घोेर संघर्ष किया। पांचालनकुरू ची में उन्होंने जो ये लड़ाई शुरू कि थी उसे1857 की क्रांति की सहायक लड़ाई व शुरू आत की लड़ाई कहा गया जिसे ब्रिटिश सरकार ने सिपाही आंदोलन का नाम दिया था। तमिलनाडु के वीरपण्डीयापुरम में जगवीर पंडियन का शासन था। उसके दरबार में आन्ध्र प्रदेश से गेट्टीबोम्मू को बुलाया गया जो उसके मंत्री थे। गेट्टीबोम्मू आंध्र प्रदेश के एक बहादुर सिपाही थे। जगवीर पंडियन के बाद गेट्टीबोम्मू ने वीरपंडियापुरम का शासन संचालन संभाला । इन्हेंे बाद में अडीकट्टाबोम्मन के नाम से जाना गया।

2 फ़रवरी 1790 वीर पंडिया पांचालनकुरू ची के राजा बने। अरकोट के राजा ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से बड़ी संख्या में पैसे उधार लिये थे। उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी को अपना कर्जा चुकाने के लिये दक्षिण भागों से कर वसूलने की अनुमति दी। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने मौके का फ़ायदा उठाया और उसने लोगों से कर के नाम पर बड़ी संख्या में धन लूट लिया। सभी लोगों ने कर भर दिया लेकिन वीर पंडिया ने ऐसा नहीं किया।

कट्टाबोमन ने अपना उधार चुकाने से इंकार कर दिया। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी जेक्सन ने उनको मिलने के लिये बुलाया लेकिन उन्होंने मिलने से इंकार कर दिया। लेकिन कुछ समय बाद वह अपने कुछ साथियों के साथ उनसे रामालिंग विलासम में मिले। वहाँ उनकी यह मुलाकात एक लड़ाई में बदल गई। कट्टाबोमन के साथियों ने अपनी सुरक्षा के लिये लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में कट्टाबोमन के साथी थानापति पिल्लै को ब्रितानियों ने कैद कर लिया। सरकार ने इस घटना का दोषी ब्रिटिश अधिकारी जेक्सन को माना। बाद में सरकार द्वारा उसे उसके पद से मुक्त कर दिया गया।

16 मार्च 1799 को तिरू नेलवेली के नये कलेक्टर ने कट्टाबोमन को मिलने के लिये बुलाया। उन्होंने कहा कि अगर ब्रिटिश सरकार ने रामानाथनपुरम में उनकी जितनी भी सम्पत्ति लूटी वो अगर उन्हें वापिस लौटा दे तो ही यह संभव है। लेकिन कलेक्टर इस बात से सहमत नहीं हुआ और उसने कट्टाबोमन पर आक्रमण करने की योजना बनाई। ब्रिटिश सेना अपने एक अधिकारी के नेतृत्व में पांचालनकुरू ची किले के चारों प्रवेश द्वार पर खड़ी हो गई। लेकिन कट्टाबोमन ने उसी रात को उस किले को छोड़ दिया। थानापती पिल्लै व दूसरे 16 लोगों को ब्रितानियों ने कैद कर लिया। ब्रितानियों ने थानापति पिल्लै का सिर धड़ से अलग कर उसे पांचालनकुरुची के एक द्वार पर लटका दिया। उधर कट्टाबोमेन कोलरपत्ती के राजगोपाल निकेर के घर में ठहरे थे। वहाँ भी ब्रितानियों ने उनको घेर लिया। वहाँ से कट्टाबोमन ओर उसके साथी भाग गये और उन्होने तिरू कालम्बर के जंगलों में शरण ली जो कि पुडुकोट्टाई के नजदीक ही थे बानेरमन ने पुडुकोट्टाइ के शासक को कट्टाबोमन को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया। अंत में कट्टाबोमेन को पकड़ लिया गया और उन्हें एक पेड़ पर लटकाकर फ़ंासी दे दी गई। पन्चालनकुरू ची के किले को नष्ट कर दिया गया। उनकी सारी सम्पत्ति को ब्रिटिश सिपाहियों ने लूट लिया। पंचालनकुरीची में 1972 में तमिलनाडु सरकार ने दक्षिण के इस महानायक की याद में एक किला बनवाया। इन्होंने हमारे देश की आजादी के आंदोलन में आधारभूत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

वेल्लोर

वेल्लोर की क्रांति ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ़ भारतीय सिपाही आंदोलन का सबसे पहला उदाहरण है। यह आंदोलन 1857 के सिपाही आंदोलन से पहले ही निश्चित किया जा चुका था। यह विद्रोह दक्षिण भारत के वेल्लोर नामक कस्बे में शुरूहुआ था। यह आंदोलन बहुत बड़ा नहीं था लेकिन बहुत भयानक था। इस क्रांति के दौरान क्रांतिकारी वेल्लोर के दुर्ग में घुस गये और उन्होंने ब्रिटिश टुकडियों के सैनिकों को मार ड़ाला व कुछ को घायल कर दिया।

इस क्रांति के पीछे मुख्य कारण यह था कि नवम्बर 1805 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सैनिकों की वर्दी में काफ़ी परिवर्तन कर दिये थे जिनको सैनिकों ने पसन्द नहीं किया और उनकी ये नापसंदगी विद्रोह में बदल गई। सरकार ने हिन्दू सैनिकों को उनके धार्मिक चिन्ह जो वे अपने मस्तक पर लगाते थे लगाने की अनुमति नहीं दी और मुस्लमानों को दाढ़ी व मूँछ हटाने के लिये बाध्य किया गया। इस बात नेसिपाहियों के दिलों में विद्रोह उत्पन्न किया और जब सैनिकों ने सरकार के खिलाफ़ अपना विद्रोह प्रदर्शित किया तोमई 1806 में कुछ विद्रोही सैनिकों को इसके लिये दंडित किया गया। एक हिन्दू और एक मुस्लिम सिपाही को इस अपराध के लिये 900 कोड़े मारे गये, 19 अन्य सिपाहियों को 500 कोड़े मारे गए और इन सब सैनिकों को ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से क्षमा मांगने के लिये बाध्य किया गया।

दूसरी तरफ़ यह आंदोलन 1799 से बंदी बनाये गये टीपू सुल्तान के बेटों को मुक्त करवाने के लिये भी किया गया था। 9 जुलाई 1806 कोटीपू सुल्तान की एक बेटी का विवाह था। इस दिन क्रांति के आयोजन कर्ता में विवाह में शामिल होने के बहाने से उस दुर्ग में एकत्रित हुए। 10 जुलाई कीे आधी रात को सिपाहियों ने दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया और अधिकांंश ब्रिटिश लोगों को मार डाला। सुबह होते ही दुर्ग के ऊपर मैसूर के सुल्तान का झंडा फ़हराया गया। इस घटना में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों ने टीपू सुल्तान के दूसरे पुत्र फ़तेह हैदर को राजा घोषित कर दिया।

लेकिन एक ब्रिटिश अधिकारी वहाँ से भाग गया और उसने नजदीक ही अर्कोट में स्थित ब्रिटिश सेना को इस घटना से अवगत करवा दिया। 9 घंटे बाद हीब्रिटिश अधिकारी सर रोलो गिलेस्पी अपनी घुडसवार सेना के साथ उस दुर्ग में पहुँचा, क्योंकि दुर्ग पर सिपाहियों द्वारा ठीक से सुरक्षा के लिये पहरा नहीं दिया जा रहा था। वहाँ ब्रिटिश सेना व क्रांतिकारियों के बीच भयानक लड़ाई हुई जिसमें लगभग 350 आंदोलन कारी मारे गये व दूसरे 350 घायल हो गये। दूसरे तथ्यों के अनुसार उस लड़ाई में 800 आंदोलनकारी मारे गये थे।

इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने बंदी किये गये शासकों को कलकत्ता भेज दिया। मद्रास के ब्रिटिश ग़र्वनर विलियम बैंटिक ने भारतीय सिपाहियों के सामाजिक व धार्मिक रिवाजों के साथ जो निरोधात्मक नियम ब्रिटिश सरकार ने लगाये थे उनको बंद कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने सिपाही विद्रोह की इस घटना से अच्छा सबक सीख लिया, इसीलिये 1857 की क्रांति के समय सिपाहियों का सामान्य गुस्सा समाप्त हो रहा था।

यह बात भी रोचक है कि वेल्लोर के आंदोलनकारियों ने टीपू सुल्तान के पुत्रों को फ़िर से सत्ता में लाने की योजना बनाई जैसा 1857 की क्रांति ने भारत के सम्राट बहादुर शाह को फ़िर से सत्ता में लाकर मुगल साम्राज्य को एक बार फ़िर से स्थापित करना चाहा था।

मद्रास में क्रांतिकारी सूत्र


जुलाई 1857
1857 : जुलाई, सुल्तानबख्श क ब्रिटिश विरोध विप्लव संगठन के हितार्थ,मद्राससे चिंगलपेट प्रस्थान।
1858 : फरवरी, गुलाम घाउज तथा शेख मन्नू की, मद्रास शहर में ब्रिटिश विरोधी विज्ञापन-पत्र शहर की दीवारों पर चिपकाने पर गिरफ़्तारी। पांडयम् कोट्टावोम्मन, तमिलनाडु के पंचालम करुचि के तिरुनेवेली क्षेत्र के पालिगरों के प्रमुख नेता थे। वे 18वी शताब्दी के अन्त तक ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध निरन्तर लडते रहे। जैसे ही, अक्टूबर, 1799 ई. में ब्रिटिश सरकार के द्वारा ये पकडे गए उन्हें 16 अक्टूबर, 1799 ई. को सरेआम फाँसी पर लटका दिया गया। 1801 ई. में इनके अनुयाईयों नें ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा, जिसमें अनेकों की जानें (जीवन) चली गई। उसके भाई उमेदोर एक युद्ध में मारे गए, पालिगर सैन्य दल के नेता पकड लिये गये और कत्ल कर दिये गये। ब्रिटिश विरोधी भावनाएँ अब तमिलनाडु के विभिन्न भागों, मद्रास के प्रमुख शहर सहित, अन्य स्थानों में आती जा रहीं थी।

जुलाई 1852 में, मद्रास की एक बैठक में, मद्रास निवासी सभा (एम. एन. ए.) का उदघाटन हुआ। नवीनीकृत क्रिस्तानी धर्म-प्रचार सम्बन्धी कार्य-कलापों के कारण दक्षिण भारत में धार्मिक तनाव उत्पन्न हो रहा था। ब्रिटिश प्रशासन धार्मिक प्रचारकों एवं क्रिस्तानियों की तरफदारी कर रहा था, यद्यपि अवैधानिक रूप से पत्र व्यवहार संचालित थे। इससे हिन्दू तथा क्रिस्तानियों के मध्य भीषण टकराव हुये। इस प्रकार तिनेवेली में दिसम्बर, 1858 में एक झगडे में क्रिस्तानियों द्वारा दस हिन्दूओ को मार डाला गया और उन्नीस को घायल कर दिया गया।किसी भी प्रकार से मद्रास सरकार ने यूरोपीय जिला अधिकारियों की कार्यवाही का अनुमोदन किया, जिन्होंने स्थानीय क्रिस्तानी दल को इस मामले में योगदान दिया। इस पर एम. एन. ए. ने अप्रैल 1859 ई. में एक आमसभा बुलाई। सभा ने भारत के राज्य सेक्रेटरी के लिये एक स्मारक स्वीकार किया जिसका तिरुनेवल्ली के असन्तोष को क्रिस्तानी धर्म प्रचारकों ने कूट-प्रबन्ध किया था, परन्तु ऐसे शान्तिपूर्ण स्मारक किसी लाभ के नहीं थे यह मनुष्यों का लौकिक अनुभव था।

1857 के स्वतंत्रता युद्ध के आरम्भिक काल से ही मद्रास दक्षिण भारत का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया जहाँ कि ब्रिटिश विरोधी गतिविधियाँ फौजी एवं नागरिक दोनों ही संगठित हुई। मद्रास के अनेक कार्यकर्ताओं ने अन्य क्षेत्रों के व्यक्तियों को स्वतंत्रता संघर्ष में कूदने के लिए भड़काया। इस प्रकार सुल्तानबख्श, जुलाई 1857 ई. में मद्रास के चिंगलपेट ब्रिटिश विरोधी विद्रोह को संगठित करने में सहायता देने और स्थानीय सभाओं से सहायता दिलाने गए। आरनागिरी (अन्नागिरि) तथा कृष्णा दोंनो नेता पहले ही चिंगलपेट क्षेत्र में विद्रोह का नेतृत्व कर रहे थे।

औरंगाबाद की प्रथम हैदराबाद घुडसवार सेना ने 12 जून सन् 1857 को विद्रोह कर दिया जो लगभग एक माह के अन्तर से उत्तर में मेरठ के बाद हुआ। दूसरे दिन 13 जून को जबकि मुल्ला हैदराबाद जो की आला मस्जिद में धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे, मद्रास से आये दो उग्रवादियों ने उन्हें बीच में टोक कर कहा कि वे ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन करने के लिये उपदेश दें। मद्रास से आये ये दोंनो व्यक्ति कोतवाल द्वारा गिरफतार नहीं किये जा सके, जो कि मौके पर मैजूद था कयोंकि वे तुरन्त अन्य व्यक्तियों के द्वारा बचा लिये गये। (इंग्लिशमेंन 27 जून सन् 1857 ; हैदराबाद का पत्र दिनाँक 4 जून 1857)।

पाँच दिन बाद 18 जून को हैदराबाद के उसी शहर में 7वीं मद्रास अश्वरोही सवार अपने अफसरो की बिना आज्ञा के, मुक्त रुप से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह का उपदेश देते हुये, ब्रिटिश सरकार के विरोधी भाषा प्रयोग करते हुये, शहर की भीड के मध्य घूमे। (एफ. एस. एच. ग्र. 2 पृ. 24)

'मद्रास की दशाओं पर रपट' के अनुसार (मद्रास सरकार न्यायिक विभाग, सरकारी आदेश सं. न. 1081-ए, दिनाँक 3 सितम्बर सन् 1857) मद्रास शहर, स्वयं के अन्तर्गत भावनाओं की दशा ट्रिपलिकन इतनी शंकालु हो गई कि 29 जून सन् 1857 को शहर के विभिन्न स्थानों पर सैनिक थाने स्थापित किये गये। यूरोपिय स्वेच्छा से सैनिक कोर के नाम भर्ती किये गये और अनेक सावधानियाँ बरती गई। ट्रिपलिकन मुसलमानी आबादी का केन्द्र था जो कि कर्नाटक के नवाब से सम्बन्धित था। नवाबी के वर्तमान में ही समाप्त होने का प्रतिफल अत्यधिक बेकारी का प्रसार और आर्थिक अवमूल्यन था जिससे लोंगो में ब्रिटिश सरकार के विपरीत विचार पैदा हो गये। विद्रोह के अन्य संकेतों में घोषणाएँ और राजद्रोही पत्र नवाब और उनके मंत्रियों से प्रार्थना के पत्र कि ब्रिटिश विद्रोह में सम्मिलित हो जायें, पकडे गये। मद्रास और उसके चारो ओर के प्रान्तों, दोंनों में ही, "न्यायाध्यक्षीय पत्र" से ज्ञात हुआ कि राजद्रोहात्मक भाषा एवं पत्र व्यवहार जारी था। ब्रिटिश शक्ति के आने वाले पतन के विषय में खुलेआम भावनायें व्यक्त की जाती थी और जनसाधारण की भावना व्यक्त की जाती थी कि विप्लव के द्वारा मोहर्रम के त्यौहार पर उखाड फेंका जायेगा।"

मद्रास के दक्षिण में केन्द्रों से क्रांतिकारी संबंध थे, जैसे बैलगाम, कोल्हापुर आदि। मुंशी मोहम्मद हुसैन ने कोल्हापुर स्थित 27वी उत्तर भारत की पल्टन बेलगाम के सूबेदार अब्दुल रहमान ने लिखते हुए इस पत्र में कहा, "मैनें तुम्हें भी पत्र भेजे जो कि मद्रास से प्राप्त हुये थे। मुझे नहीं मालूम कि क्या वे तुम्हारे पास पहुँच गये हैं या नहीं इस विषय में मैं चिन्तित हूँ। मुझे शीघ्र बताओ कि आपकों इस निर्देश से क्या खुफिया वृतांत प्राप्त हुआ। (एस. एम. एच. एफ. एम. एल. ग्र. स. पृ.267) ब्रिटिश राजनीतिक प्रतिनिधि, बैलगाम, ने अपनी खुफिया रपट 28 जुलाई 1857 में गम्मभीर षड्यन्त्र रचना की खोज के विषय में बताया जिसका साधारणत प्रसार शाखाओं के समान मैसूर, कुरुनूल, मद्रास तक फैला था। उसने बताया कि गुप्तचर झनुलबदीन मद्रास के लिये चल दिए और उन्होंने बचाव के सावधानीपूर्ण तरीकों के लिये प्रार्थना की। हैदराबाद स्थित ब्रिटिश प्रतिनिधि ने बाद में झनुलबदीन का एक पकडा गया पत्र मद्रास सरकार को भेज दिया। युद्ध के प्रारम्भ से ही मद्रास की ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोही हरकतों को बढने से अपने क्षेत्र में रोकने के लिये सभी सम्मभावित सावधानिया बरती। सरकार ने तटीय मजिस्ट्रेट्रो को जून 1857 से ही कुछ गश्ती पत्र भेजना प्रारम्भ कर दिया था। बंगाल फौज के प्रतिबन्धित सिपाहियों के विषय में एक परिपत्र आदेश सं.. 733 जो 27 जून, 1857 को जारी हुआ, कि अगर कोई जिले में प्रवेश करता है, तो उस पर आवश्यक निगरानी रखी जाए, और फकीर व विदेशियों की गतिविधियों पर ध्यान रखा जाय, क्योकि ये सेना में राजद्रोह व हलचल पैदा कर सकते है। (सेन्ट जोन्स, किला, मद्रास न्यायिक परामर्श सं. 38 दिनाँक 30-6-1857 ) (विदेशी शब्द का अर्थ त्रावनकोर, कोचीन हैदराबाद राज्यों के साथ-साथ फ़्राँसीसी, पुर्तगाली बस्तियों के भारत में निवासी। )

10, जुलाई सन् 1857 को जारी परिपत्र में यह दोहराया गया कि फकीर, वैरागी तथा पन्डाराम और सभी शंकापूर्ण चरित्रो का कुछ जिलों में प्रवेश पर सूक्ष्मता से निरीक्षण हो। परिपत्र आदेश सं. 733 ( 27 जून, 1857 ई. ) बंगाल फौज के सिपाहियों को धारा 17-1857 से हिरासत में रखने के आदेश पहले से ही थे, एक रहस्यपूर्ण सन्देश दिनाँक 25 अगस्त ,1857 के द्वारा सभी मजिस्ट्रेट्रों और पुलिस आयुक्तों को निर्देशित किया गया कि वे निगरानी के तरीके अपनायें जिससे विदेशी राज्यों से जनता बची रहे और वे आन्तरिक भारत में प्रवेश न कर पायें। विशेषत : विदेशी अधिकारी जो गदर कर्ताओं के साथ नौकरी न प्राप्त कर लें तथा अन्य देश में घूमते न फिरें उन्हें छोडकर जिन्हें सरकार के सेक्रेटरी से आज्ञा प्राप्त हो गई हो। वे दल जिनके पास देशद्रोही प्रपत्र, विज्ञापन पत्र तथा घोषणा पत्र आदि हों, उन्हें तुरन्त ही आयुक्त को धारा 14, 1857 के अन्तर्गत सौप दें। जिला न्यायाधीश तथा अन्य अधिकारीगण जो सत्र-न्यायाधीश की शक्तियों का उपयोग कर रहें, इसके अतिरिक्त कुरूनूल गंजम और विशाखापट्टनम में नियुक्त सरकार के प्रतिनिधि जो आयुक्त के रूप में धारा 14, 1857 के अन्तर्गत राजद्रोहियों, कानून तोडने वाले तथा वे गदर वृद्धि में तथा विद्रोह में सहायक अभियोग चला सकें --- धारा 11-14 1857 ( निर्देश दिनाँक 27 जुलाई 1857, फोर्ट सेन्ट जोर्जेस गजट 7 अगस्त 1857 पृ. 221 प्रतिलिपी फौजदारी अदालत को तथा सभी सम्बन्धित अधिकारियों को भेजी गई।

मद्रास की सरकार ने अपनी न्यायिक प्रक्रिया (दिनाँक 25-8-1857 तथा 8-9-1857) में उल्लेखित किया कि किन परिस्थितियों में वे मद्रास प्रान्त में व्यवहारिक प्रयोग में, धारा 14-1857 को लाने को बाध्य हुये। अगस्त 1957 को एक परिपत्र जिला अभियन्ताओं के संस्थान भी इस बात के लिये अधिकृत हो गये मुफस्सल क्षेत्र में जो भी संदिग्ध व्यक्ति घुमते पाए जाये पकडे जा सकते है, विशेषत: धार्मिक साधू अथवा वे व्यक्ति जो फौजी पोषाक पहनें हों, प्रक्रियाओं ने आगे जिला अभियन्ताओं को अक्टूबर, 1857 के प्रपत्र के द्वारा एक बार पुन: चेतावनी दी कि शंकायुक्त लोग अब भी शहर में घूम रहे हैं और पूर्व के प्रपत्रों के द्वारा ध्यान दिलाया गया है। 27 जून का आदेश सं. 733, 10 जुलाई आदेश सं. 798 1857 की धारा 25 में यह विधान है कि जायदाद कुडक हो जायेगी यदि किसी ने गदर में भाग लिया हो चाहे वह अफसर अथवा आम सेना का सिपाही ही क्यों न हो।

सितम्बर 1857 ई. को मद्रास सरकार को ब्रिटिश गर्वनर जनरल भारत में से दो विभिन्न राजद्रोही घोषणाओं की प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुई जो मद्रास प्रान्त के नागरिक एवं फौजी दोंनो ही अधिकारियों के लिये थी कि जो सैनिक टुकडियों एवं जनता, दोनो मे साधारणत: खबरे फैलाते हैं तथा उन्हें संक्षिप्त अभियोजन के पश्चात् उन सभी व्यक्तियों को जो बलवा करते हों या उकसाते पाये जायें कठोर तथा उदाहरणात्मक दण्ड दिया जायें।

ऐसी सभी सावधानियों के बावजूद क्रान्तिकारियों ने प्रत्येक स्थान पर ब्रिटिश विद्रोह संघठित करने के लिये, स्वतंत्रता की सूचनाएँ फैलाने के मार्ग निकाल लिये। वे विभिन्न स्थानों पर शंकालू चरित्र के रूप में पकडें गये अथवा वे जो देशद्रोही ही विज्ञापन पत्र अपने साथ ले जा रहे थे उन्हें पकडना कठिन था। इस प्रकार किसी व्यक्ति की गिरफ़्तारी को प्रभावित करने के लिये (नाम अनिश्चिित है, हो सकता है, अमीर खाँ हो) अक्टूबर 1857 में, मद्रास सरकार, पुलिस आयुक्त की सिफारिश पर पुलिस के सिपाही और उसके सहयोगी को 400/ - रुपये देना स्वीकार किया।

सेन्ट जार्ज फोर्ट की 9 फरवरी, 1858 की न्यायिक प्रक्रिया मद्रास के दो उग्रवादियों के अभियोजन के विषय में बताती है--- नाम थे गुलाम फाउज और शेख मन्नु शहर में अत्यन्त देश द्रोहात्मक भाव के विज्ञापन पत्र चिपकाते हुये पकडे गये ; जो कि स्वतन्त्रता संग्राम के और मद्रास के लोंगो को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विप्लव के लिये उठ खडे होने के लिये थे। दोनो विद्रोह उभारने के लिये दोषारोपित हुये। उन्हें मद्रास में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उनके साधारण जीवन जिन्दगी की सीमा तक के लिये तने सरिम भेजने का कारावास हुआ। पूर्व में भारत सरकार ने अपने नियन्त्रित आदेश सं. 1984 पहली दिसम्बर, 1857 के द्वारा विशेष रूप से यह स्पष्ट किया कि सभी व्यक्ति गदर के अभियोग के लिये जिन्हें आजीवन कारावास हो ; केवल अण्डमान टापुओं को भेजा जाये। अत: यह निर्दिष्ट किया गया कि भविष्य के सभी अभियोगों में (जबकि निर्वसन का आदेश सुनाया जा रहा हो,) (निर्वसन का स्थान स्पष्ट किया जायेगा।) (न्यायिक परामर्श सेन्ट जार्ज फोर्ट, मद्रास सं. 16, 9 -2-1857)

भारत सरकार निर्मित नियम के अनुसार, सारे अभियोगी जो पूर्व में अन्य स्थानों को भेजे गये जैसे तनेसरिम, मौलमियाँ (दोनों आजकल म्याँमार में) पिनांग (मलेशिया) में, सिंगापुर, प्रिन्स ऑफ वेल्स द्वीप आदि के अण्डमान द्वीप समूह में परिवर्तन होने थे, हमें उदाहरण के अनुसार यह भी ज्ञात होता है कि प्रिन्स ऑफ वेल्स के गर्वनर ने जुलाई, 1858 में यह सूचना दी कि गदर राजद्रोह और विद्रोह के लिये भेजे गये समस्त अभियोगी अण्डमान द्वीप भेजे जायेंगे।" (फोर्ट सेनेट जार्ज, मद्रास, न्यायिक परामर्श सं. 65-66, 13-7-1858 )

2. प्रमुख नेता
गुलाम धाउस शेख मन्नू
सुल्तानबख्श

3. अन्य विशेष व्यक्ति
मोहम्मद हुसैन मुंशी (बेलगाँम)
अब्दुल हुसैन सुबेदार (कोल्हापुर)
झनुलबदीन (बेलगाँम)

4. कैदी
आजन्स निर्वसन
गुलाम धाउल शेख मन्नू
अमीर खाँ, पुत्र लाल खाँ
अन्य
अब्दुल कादर वालिया सईद अब्दुल्ला
(मद्रास से 1857 की हलचल में दोषारेपित हुए और 13 अक्टूबर, 1857 को थाना जेल पहुँचे। )

5.स्त्रोत
इंडिया ऑफ़िस लाईब्रेरी तथा लेख चंदन न्यायिक प्रक्रियाएँ, 1859 15859 श्रृंखला 26 फरवरी 1858।
तमिलनाडू ग्रन्थ संग्रहालय, फॉर्ट सेन्ट जार्ज की सरकार, मद्रास न्यायिक प्रक्रियाओं के परामर्श सूत्र।
1857 : 30-6-1857, 14-7-1857, 28-7-1857, 11-8-1857, 25-8-1857, 8-9-1857, 6-10-1857, 13-10-1857, 20-10-1857, 23-12-1857.
1958 : 9-2-1859, 22-6-1858, 17-8-1858, 19-10-1858.
1859 : 5-4-1859, 20-10-1858.
1861 : 19-11-1861.
1862 : 1-3-1862, 24-5-1862.
मुंबई पुरा अभिलेखागार राज. वि. ग्र. 31, 1857 पृ. 479-482. एफ. एस. ए. पी. ( ए ) ग. 1, पृ. 3, 7, 10, 146, 147, 183, 191, 194.
एफ. एम. एच. एफ. एम. आई. ग्रं. 1, पृ. 267.
इंगलिश मेन जून 27, 1857.
आर. सुथार लिंगम -पॉलटिक्स एण्ड नेशनल अवेकनिंग, आउथ इम्डिया 1858-1891 जयपुर तथा देहली 1980, पृ. 48-55.

चिंगलपुट का विद्रोह (मद्रास के निकट)


जुलाई-अगस्त, 1857
1857 : जुलाई, सुल्तानबख्श का मद्रास से चिंगलपुट आना।
1857 : 27 जुलाई, 5-6 सौ लोगों के द्वारा क्रांतिकारी विद्रोह का प्रारंभ अर्नागिरि एवं कृष्णा के नेतृत्व में मुख्य लक्ष्य टेलिग्राफ के खंभे और तार। चिंगलपट मद्रास के निकटस्थ दक्षिण दिशा में समुद्र तटीय जिला है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बहुत प्रारंभिक दिनों में यह क्रांतिकारी और गोपनीय कार्यवाहियों और बैठकों का अड्डा बन गया था।

जुलाई, 1857 में, दो हिंदू मंदिर एक छोटा चिंगलपुट शहर के तीन मील दक्षिण पश्चिम में मनिपकम में स्थित, और दूसरा उससे बड़ा, चिंगलपुट शहर के उत्तर में पल्लवरम में स्थित, क्रांतिकारियों के क्षेत्रीय शरणस्थल बन गए थे। अर्नागिरी और कृष्णा जो ज्योतिषी थे, या कि ज्योतिषी होने की छवि बनाए थे, क्रांतिकारियों के दो प्रमुख नेता थे।

इसी समय, अर्थात जुलाई 1857 में सुल्तान बख्श , जो देहली के बादशाह बहादुर शाह के शाही परिवार के थे और उसी रिश्ते के कारण पेंशन लेते थे, मद्रास से चिंगलपुट आ गए। उनका बड़े सम्मान सहित स्वागत किया गया। तत्पश्चात् उन्होंने अपने साथियों और स्थानीय क्रान्तिकारियों के साथ गोपनीय बैठकें करनी आरम्भ कर दीं। तत्कालीन चिंगलपुट के दीवानी एवं सत्र न्यायाधीश के मत में उनके आने का उद्देश्य बन्दियों को विद्रोह करके अपने सहयोगी बनाने का था, ताकि जब बलवा हो तो वे उपयोगी सिद्ध हो सकें। (मद्रास के न्याय विभाग का शासनादेश संख्या 1081-ए दिनाँक 3 सितम्बर, 1857)

27 जुलाई, 1857 की रात्रि 0को चिंगलपुट के दक्षिण में स्थित वमगोलुम तालाब के समीप लगभग 500-600 क्रान्तिकारी एकत्रित हुए। वे वहाँ प्रातः 3 या 4 बजे तक रहे। तत्पश्चात् अर्नागिरी और कृष्णा के निर्देशानुसार, उनके नेताओं व उन लोगों ने ब्रिटिश राजा के विरूद्ध बगावत प्रारम्भ कर दी। उनके मुख्य लक्ष्य थे समीपवर्ती क्षेत्र टेलीग्राफ के खम्भे और तार, जिन्हे उन लोगों ने काटना और ध्वस्त करना प्रारम्भ कर दिया।

31 जुलाई को पुनः उसी प्रकार की बग़ावत चिंगलपुट क्षेत्र में हुई। विद्रोह फैलता चला गया। चिंगलपुट के मजिस्ट्रेट ने 8 अगस्त, 1857 को सैदापेट से लिखे गए पत्र में मद्रास सरकार को इन गंभीर घटनाओं के बारे में सूचित किया। उस पर मद्रास सरकार ने एक आदेश इस प्रकार से जारी किया, " टेलिग्राफ के तारों से छेड़छाड़ करने वालों की तुरंत खोजबीन की जाय और उन्हें दंड दिया जाय। " ( मद्रास सरकार की आदेश संख्या 1010 दिनांक 13 अगस्त, 1857) यहाँ यह ध्यान रखने योग्य बात है कि टेलिग्राफ संचार जाल जो उस समय भारत में नया स्थापित किया गया था, ब्रितानियों के भारतवासियों से युद्ध 1857-58 जीतने में उसने बड़ा महत्वपूर्ण कार्य अदा किया। अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से कहा गया है कि ब्रिटिश सेना के समस्त तत्कालीन जनरलों में सबसे सफल भाग टेलिग्राफ सिद्ध हुए। भारतवासियों के क्रियाकलापों का पूर्वाकलन और शाही फ़ौज, जवाबी सैन्य चातुरी की प्रभावशाली व्यवस्था करने में वह सफल सिद्ध हुए। अतः सभी जगह उसी कठिनाई का सामना करना पड़ा। इसे स्वीकार करते हुए टेलिग्राफ के तारों को ध्वस्त करने के कार्य को ब्रितानियों के विरुद्ध संग्राम में प्रमुख लक्ष्य रखा गया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह संदेश चिंगलपुट के क्रांतिकारियों तक पहुँच गया था और उन्होंने उसी के अनुसार कार्य किया।

इस प्रकार ब्रितानी अर्नागिरी, कृष्णा व उनके साथ कुछ अन्य क्रांतिकारियों को पकड़ में सफल हो गए। चिंगलपुट में उन पर यह अभियोग चला कि इन्होंने गोपनीय बैठकों और व्यक्तियों को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एकत्रित किया, 27 तथा 31 अगस्त, 1857 को इन्होंने अव्यवस्था फैलाई और तार के खंभों को ध्वस्त किया आदि। गिरफ़्तार किए जाने के पश्चात् अर्नागिरी और कृष्णा को दो-दो ज़मानतें देने के आदेश हुए और अवहेलना करने पर उन्हें चार महीनों का कारावास भोगना था।

सुल्तानबख्श और उनके चार सहयोगियों को भी इसी प्रकार गिरफ़्तार करके ज़मानत देने के आदेश हुए कि वे बिना सूचित किए तथा अनुमति लिए मद्रास नहीं छोड़ेंगे। चिंगलपुट में उनका देलही के राजा के परिवार के सदस्य के अनरूप ध्यान रखे जाने की अनुमति दे दी गई। यदि वे फिर से प्रतिकूल व्यवहार करें तो उनका भत्ता बंद कर दिया जाय। देहली से पेन्शन पाने वाले जो मद्रास में थे साधरणतः शहर नहीं छोड़ सकते थे। (फ़ोर्ट सेंट जार्ज), न्यायिक सलाह संख्या 71, दिनांक 4-8-1857)

मद्रास सरकार ने चिंगलपुट मजिस्ट्रेट को यह भी निर्देश दिए कि मद्रास के पुलिस आयुक्त के द्वारा भेजे गए कुछ लोग जो भयंकर समझ जाते हैं उनको ज़मानत पर मुक्त न किया जाय (देखिए वही सं. 63-64, दिनांक 11-8-1857) कुछ समय पश्चात् चिंगलपुट के मजिस्ट्रेट से रपट माँगी गई कि उन गोपनीय बैठकों के विरुद्ध क्या उपाय करें जो मुसलमानों और सुलतान बख़्श और उन दो हिंदू ज्योतिषियों ने की थीं।

अंततः चिंगलपुट का विद्रोह कठरोता से दबा दिया गया। विशिष्ट आयुक्त के द्वारा बग़ावत के मामलों की जाँच 1857 के विधि सं. 14 के अंतर्गत की गई। अतः हामिद जलाल चिंगलपुट न्यायालय के मुंशी जिन्होंने बग़ावत की गुप्त योजना बनाने में भाग लिया था, उन पर इसी विधि के अंतर्गत चलाया गया और दंड दिया गया।

2 प्रमुख नेता
अर्नागिरी (ज्योतिषी)
कृष्णा (ज्योतिषी)
सुलतान बख़्श (देहली के राजपरिवार के सदस्य)

3 अन्य विशेष व्यक्ति
सैयद हामुद जलाल (चिंगलपुट न्यायालय के मुंशी)

4 बंदी
अर्नागिरी
कृष्णा

5 नज़र बंद
सुलतान बख़्श (मद्रास में नज़र बंद)

6 स्त्रोत
तमिलनाडु पुरालेख, अभिलेखागार मद्रास
मद्रास सरकार सेंट फ़ोर्ट जार्ज को न्यायिक प्रक्रिया-परामर्श दिनांक 4-8-1857, 11-8-1857, 18-8-1857, 1-9-1857)
मद्रास, न्याय विभाग आदेश संख्या, 1012 दिनांक 13 अगस्त, 1857, संख्या 1081-ए, दिनांक 3 सितम्बर, 1857।
(एफ. एस. ए. पी (ए) खंड 1 पृष्ठ 147.

 

क्रांति १८५७

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