क्रांति १८५७
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झांसी की रानी का ध्वज

स्वाधीन भारत की प्रथम क्रांति की 150वीं वर्षगांठ पर शहीदों को नमन
वर्तमान भारत का ध्वज
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क्रांति १८५७
 

प्रस्तावना

  रुपरेखा
  1857 से पहले का इतिहास
  मुख्य कारण
  शुरुआत
  क्रान्ति का फैलाव
  कुछ महत्तवपूर्ण तथ्य
  ब्रिटिश आफ़िसर्स
  अंग्रेजो के अत्याचार
  प्रमुख तारीखें
  असफलता के कारण
  परिणाम
  कविता, नारे, दोहे
  संदर्भ

विश्लेषण व अनुसंधान

  फ़ूट डालों और राज करो
  साम,दाम, दण्ड भेद की नीति
  ब्रिटिश समर्थक भारतीय
  षडयंत्र, रणनीतिया व योजनाए
  इतिहासकारो व विद्वानों की राय में क्रांति 1857
  1857 से संबंधित साहित्य, उपन्यास नाटक इत्यादि
  अंग्रेजों के बनाए गए अनुपयोगी कानून
  अंग्रेजों द्वारा लूट कर ले जायी गयी वस्तुए

1857 के बाद

  1857-1947 के संघर्ष की गाथा
  1857-1947 तक के क्रांतिकारी
  आजादी के दिन समाचार पत्रों में स्वतंत्रता की खबरे
  1947-2007 में ब्रिटेन के साथ संबंध

वर्तमान परिपेक्ष्य

  भारत व ब्रिटेन के संबंध
  वर्तमान में ब्रिटेन के गुलाम देश
  कॉमन वेल्थ का वर्तमान में औचित्य
  2007-2057 की चुनौतियाँ
  क्रान्ति व वर्तमान भारत

वृहत्तर भारत का नक्शा

 
 
चित्र प्रर्दशनी
 
 

क्रांतिकारियों की सूची

  नाना साहब पेशवा
  तात्या टोपे
  बाबु कुंवर सिंह
  बहादुर शाह जफ़र
  मंगल पाण्डेय
  मौंलवी अहमद शाह
  अजीमुल्ला खाँ
  फ़कीरचंद जैन
  लाला हुकुमचंद जैन
  अमरचंद बांठिया
 

झवेर भाई पटेल

 

जोधा माणेक

 

बापू माणेक

 

भोजा माणेक

 

रेवा माणेक

 

रणमल माणेक

 

दीपा माणेक

 

सैयद अली

 

ठाकुर सूरजमल

 

गरबड़दास

 

मगनदास वाणिया

 

जेठा माधव

 

बापू गायकवाड़

 

निहालचंद जवेरी

 

तोरदान खान

 

उदमीराम

 

ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव

 

तिलका माँझी

 

देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह

 

नरपति सिंह

 

वीर नारायण सिंह

 

नाहर सिंह

 

सआदत खाँ

 

सुरेन्द्र साय

 

जगत सेठ राम जी दास गुड वाला

 

ठाकुर रणमतसिंह

 

रंगो बापू जी

 

भास्कर राव बाबा साहब नरगंुदकर

 

वासुदेव बलवंत फड़कें

 

मौलवी अहमदुल्ला

 

लाल जयदयाल

 

ठाकुर कुशाल सिंह

 

लाला मटोलचन्द

 

रिचर्ड विलियम्स

 

पीर अली

 

वलीदाद खाँ

 

वारिस अली

 

अमर सिंह

 

बंसुरिया बाबा

 

गौड़ राजा शंकर शाह

 

जौधारा सिंह

 

राणा बेनी माधोसिंह

 

राजस्थान के क्रांतिकारी

 

वृन्दावन तिवारी

 

महाराणा बख्तावर सिंह

 

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

क्रांतिकारी महिलाए

  1857 की कुछ भूली बिसरी क्रांतिकारी वीरांगनाएँ
  रानी लक्ष्मी बाई
 

बेगम ह्जरत महल

 

रानी द्रोपदी बाई

 

रानी ईश्‍वरी कुमारी

 

चौहान रानी

 

अवंतिका बाई लोधो

 

महारानी तपस्विनी

 

ऊदा देवी

 

बालिका मैना

 

वीरांगना झलकारी देवी

 

तोपख़ाने की कमांडर जूही

 

पराक्रमी मुन्दर

 

रानी हिंडोरिया

 

रानी तेजबाई

 

जैतपुर की रानी

 

नर्तकी अजीजन

 

ईश्वरी पाण्डेय

 
 

गोवा


पुर्तगाली अत्याचारों के विरूद्ध 1852 से ही संघर्ष चल रहा था। 1855 में पुर्तगाल की स्थानीय सरकार ने स्वतन्त्रता के नेता दीपू जी राणा को पकड़ने के लिए 1500 रू पये का पुरस्कार भी घोषित किया था। 1857 की क्रांति से यहां की पुर्तगाली बस्तियों गोवा, दमन, दयू में नवचेतना जागी। दीपूजी राणा ने विद्रोह का संचालन किया जिसे बाद में गिरफ़्तार कर लिया गया था। स्थानीय सरकार ने लिस्बन से सैनिक मदद भेजने को लिखा था।

दीपूजी राणे का गोआ में पुर्तगालियों के विरुद्ध राजद्र्रोह


1856--
1852 : जनवरी 26, सत्तारी महल के दीपूजी राणे पुर्तगालियों के विपरीत विद्रोह का झंडा खड़ा करते हैं।
1855 : जून 2, दीपूजी तथा पुर्तगालियों के मध्य शांति संधि।
1856 : पुर्तगालियों की शांति संधि लागू करने में असफलता अत: दीपूजी पुन: पुर्तगालियों के विपरीत युद्ध जैसे कृत्यों का नवीनीकरण करते हैं।
1858 : अक्टूबर, पुर्तगाली सेना दीपूजी राणे को घेरती है, और गिरफ़्तार कर लेती है।
पुर्तगालियों ने अपना 'प्रथम' शासन (वादे में उसे प्राचीन विजय कह कर पुकारा) 1510 ई. में गोआ पर स्थापित किया और धीरे-धीरे पडौसी क्षेत्रों में इसका प्रसार किया। 1788 ई. तक (मई विजय से) वे अपने क्षेत्र के स्वामी बन गए जिसमें सावन्तवाडी के उत्तर के क्षेत्र, दक्षिण में कारवार के क्षेत्र; तथा पूर्व में सूपा तथा पश्चिम में समुद्र तटीय क्षेत्र उनके मध्य सम्मलित थे। सत्तारी का महल जो सावन्तवाडी रियासत का भाग था, गोआ के उत्तर-पूर्व के सीमान्तर क्षेत्र 1740 ई. में जीत लिए गए। सतारी के राणे लोगों ने अपनी खोई स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए कुछ प्रयत्न भी किए।

1851 ई. में गोआ के गर्वनर ने जनतापर पुर्तगाली कानून लादने शुरू कर दिए और इनाम व मोकासस पर टेक्स लगाने प्रारंभ कर दिए जो अब तक कर-मुक्त थे। मनुष्यों को 'पजामे' और स्त्रियों को 'ब्लाउज' पहनने को बाध्य किया जाने लगा जो कि उनकी जन-साधारण पोशाक नहीं थी।

'पोशाक कानूनों' के संदर्भ में निरीक्षण के बहाने कुछ पुर्तगाली सिपाहियों ने स्त्रियों का सतीत्व हरण किया, इसकी भी कुछ घटनाएँ हुई। सातारी के लोग अत्यधिक तंग होकर तथा 1852 ई. के प्रारंभ में दीपूजी राणे के अंतर्गत पुर्तगालियों के शैतानी राज्य को उखाड़ फैकने के लिए एकत्रित हो गए।

26 जनवरी 1852 को दीपूजी राणे ने पुर्तगाली सरकार के विपरीत विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। उन्होंने नानहा का क़िला लेकर विद्रोह प्रारंभ किया। अन्तत: वे अनेक फ़ौजी प्रक्रियाओं के माध्यम से, पुर्तगालियों को सतारी महल से बहार निकालने में सफल हो गए। राणे के और सत्तारी के अन्य व्यक्तियों के स्वप्न साकार हो गए, जब दीपूजी की फ़ौजों ने क्वेपम, कन, कोना, हेमाद, वारशे तथा माटग्राम मुक्त करा लिए। दीपूजी के इस स्वात्रंत्य युद्ध से बहुत से देशाई और गावकर उनकी तरफ़ हो गए। तुरंत वे सत्तारी के ही नहीं बल्कि अन्य पडौसी क्षेत्रों, ब्रिटिश शासन में सम्मिलित क्षेत्र जैसे सावन्तवाडी कारावार, सूपा, मंगलौर, आदि के भी पौराणिक नेता बन गए। 1 जुलाई 1852 ई. में सावन्तवाडी के अधिकारियों ने कासिम खाँ पुत्र इस्मायल खाँ, तथा शेख़ इब्राहीम पुत्र शेख उस्मान पर दीपु जी की सेवा करने के लिए मुक़द्दमा चलाया और उन्हें दो वर्ष तथा एक वर्ष के कारावास की साथ-साथ सजा दी गई। सत्तारी के दीपू जी राणे और केरी के अप्पाजी राणे ने दो अलग परंतु एक से पत्र 11 सितम्बर 1852 को द्वितीय व प्रथम सावन्तवाडी के ब्रिटिश पॉलिटिकल सुपरिटेडेंट एन्डरसन को, पुर्तगालियों के विपरीत अपने संघर्ष के कारणों को समझाते हुए लिखे। एन्डरसन ने अपने समान प्रत्युत्तरों दिनांक 30 सित्मबर 1852 के द्वारा, इस मामले में दख़ल देने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की। यहाँ यह बताया जा सकता है कि फोन्द सेवकों ने जो पूर्व में ब्रिटिश शासन के विपरीत उठ खड़े हुए थे, गोआ में 1850 से शरण पाये हुए थे और दीपू जी से सुरक्षा तथा सहायता प्राप्त कर रहे थे। अत: ब्रिटिश शासन स्वयं ही दीपूजी के क्रिया-कलापों से अप्रसन्न था।

फ़रवरी सन् 1855 में पुर्तगाली सरकार ने दीपूजी की गिरफ़्तारी के लिए 1500 रुपये का पुरस्कार घोषित किया। दूसरे माह दीपूजी के फौजियों ने मंगलूर ज़िले में सरकार के एक चुंगी घर पर हमला किया। इस प्रकार, दीपूजी पुर्तगाली सरकार तथा ब्रिटिश दोनों से ही पलायनवादी हो गए।

अन्त में पुर्तगाली सरकार ने, दीपूजी राणे के साथ 2 जून, 1855 को एक संधि की। इस संधि के द्वारा दाँव पंचायतों के सभी अधिकार पुनर्जीवित हो गए; और क्रिस्तानी धर्म के निदेश का कार्यान्वन वापिस कर लिया गया। उन सभी लोगों के प्रति जिन्होंने राजद्रोह में भाग लिया था, राजनीतिक क्षमादान स्वीकृत हो गया तथा स्वयं दीपूजी को गणवेश, खडग केपीटाओ कप्तान की उपाधि से अलंकृत किया गया। पुर्तगाली सरकार के गजट में संधि का मूललेख प्रकाशित हुआ (वोलिटिन डो गोर्वनो) जून 15, 1855 दीपूजी की ओर से स्वयं दीपूजी ने ही हस्ताक्षर किए अप्पाजी राणे देशाई (दीपूजी के भतीजे) ने, माटग्राम के वाला देशाई ने करोड़ के वावे सावन्त मंटोडकर मवासी के खेमलों गाँवकर तथा विथे गाओन्स केरकर ने हस्ताक्षर किए। कैसे भी संधि की शर्तों का पुर्तगालियों ने सच्चाई से पालन नहीं किया। उन्होंने अपने नियंत्रणात्मक तरीके पुन: प्रारंभ कर दिए, उस पर दीपूजी राणे ने अपनी 1856 में नवीनीकृत प्रतिक्रिया शक्ति से प्रारंभ कर दी। विद्रोह में उनका मोलिगम् के तुकाराम शेणवी वरचूलो, राम शेणवी वरचूलो विडलपुर के रावजी दुभाषनि वहीं ; नारायण दुभाषिन सुरला के सननलेलियम गोविन्द नीलकण्ठ शेणवी अंत भार वारवै ; तथा अमोना के रावलू रामचंद्र शेणवी ने साथ दिया जिन्होंने कि सनक्लेलिम, विचोलिम, तथा पडौसी क्षेत्रों में कार्य किया। इनमें से रामा रावजी नारायण गोविन्दा अप्रैल 1857 को गिरफ़्तार कर लिए गए और उन पर अभियोग चलाया गया। दीपूजी ने अपने 26 मई 1857 के चंबे पत्र में वायसराय गोवा को संबोधित करते हुए बताया कि गोवा वासियों की क्या दयनीय दशा थी जिसके कारण वे पुर्तगालियों के शासन से नियंत्रित एवं सीमित हो गए थे। (यह पत्र मूल रूप से मोदी लिखावट में मराठी में लिखा गया, गोवा राज्य के पुरा-अभिलेखागार पणजी, में प्राप्य है; इसे पूर्ण रूपेण डॉ. पी. एस. पसुरलेन्सर ने 'भारत मित्र' के सित्मबर 1936 के अंक में छापा था।(रीवन, गोवा) और पुन: एम. एच. सरदेसाई के गोवा दामन, दिव स्ववातंत्र्य लढयाचा इतिहास (प 2. 171-174 में मुद्रित हुआ।)

मई 1857 में, स्वतंत्रता युद्ध में भारत में अन्य राज्यों के साथ दीपूजी राणे ने अपनी गतिविधियाँ भी तीव्र कर दीं। पुर्तगाली गवर्नर जनरल, गोआ, में स्वातनत्रय युद्ध के प्रसार परिणामों से अत्यधिक निराश हो गए। भारत की युद्ध स्थिति पर अपनी रपट में लिप्टअधिकारीयों को 5 अगस्त 1857 को यह उल्लेख किया कि गोवा में पुर्तगाली शासन पाताल में पहुँचने के कगार पर है ; ब्रिटिश सरकार के लोग युरोप से फ़ौजें बुलाकर इस संकट का मुक़ाबला कर रहे हैं लेकिन गोवा में एक भी (युरोपीय) पुर्तगाली सिपाही नह़ीं आया और गोवा में दलों का 9/10 भाग स्थानीय व्यक्तियों की भर्ती से निर्मित है अत: यदि पडौसी ब्रिटिश क्षेत्र में विद्रोह भड़कता है; दूसरे दिन यह सतारी तक फैल जाएगा और तीसरे दिन यह समस्त गोवा को निगल जाएगा अत:उन्होंने लिस्वन के अधिकारियों से प्रार्थना की कि कुछ युरोपीय फ़ौजी दल तुरंत भेज दिए जाए। (को रसपोन्डेसिया पेरा ए रेटनो 1857-58 एच. ए. जी. एच. एस. 21 वी 23 वी : शिरोडकर इनसरजेन्सी पृ. 816) पुन: उसकी युद्ध स्थिति रपट में दिनांक 22 अगस्त 1857 उन्होंने लिस्वन के अधिकारियों को लिखा कि भारत में अपनी नई विद्रोही सफलताओं के समाचारों से साहस पाकर दीपूजी और उनके अनुयायी स्वयं तैयारी कर रहे थे और यदि राजद्रोह भड़कना प्रारंभ होता है, तो वह नहीं जानते कि किस प्रकार पुर्तगाली सरकार इसे बुझा सकेगी (आईक्डि 41 वी, 42 वी)

दीपूजी राणे की गतिविधियाँ तुरंत ही पडौसी ब्रिटिश क्षेत्र में फैल गई। उन्होंने और उनके अनुयाइयों ने वहाँ अत्यधिक प्रभाव अर्जित कर लिया। दूसरी तरफ़ ब्रिटिश अधिकारियों को यह विश्वास था कि रामजी श्रीष्ठ, जो 27वी उत्तर भारतीय पलटन के नेता थे, कोल्हापुर में 31 जुलाई 1857 को फ़ौजी विद्रोह किया, गोवा राज्य में अपने अनुचरों के साथ निकाल भागे। जे. डी. रोविन्सन विशेष आयुक्त कनारा, ने 14 अगस्त 1857 को पुर्तगाली गवर्नर जनरल को यह प्रार्थना करते हुए लिखा कि भगेडू सिपाही तथा अन्य विद्रोही लोग गोवा क्षेत्र के रास्ते से फ़क़ीर आदि के वेश में गुज़र सकते हैं; अत: किसी भी शंकायुक्त व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया जाना चाहिए तथा संबंधित ब्रिटिश क्षेत्र के दंडाधिकारी अभियोजन तथा दंड के लिए भेज देना चाहिए। इस प्रकार स्वातंत्र्य युद्ध गोवा और ब्रिटिश क्षेत्रों में एक दूसरे से मिश्रित हो गया तथा पुर्तगाली और ब्रिटिश अधिकारियों में उनको दबाने में सहयोग बढ गया। बेलगाव रत्नागिरी, कोल्हापुर व सतारा से विप्लव को दबाने के लिए कुछ ब्रिटिश सैन्य-अंश गोवा से होकर गुज़ारे।

दीपूजी राणे अपने विरोधियों के लिए गिरफ़्तारी के लिए कठिन और शक्तिशाली होते जा रहे थे। उनका प्रभाव पुर्तगाली और ब्रिटिश क्षेत्र में बढ रहा था। जे.डी. राविनसन्स ने मद्रास के चीफ़ सेक्रेटरी को जून 1858 में लिखकर सूचना दी कि दीपूजी राणे को शक्तिहीन बनाने के लिए पुर्तगालियों ने असफल प्रयास किए। (उन्हीं का पत्र सन्. 326 दिनांक केम्प जग्गलपेट 4 जून 1858) पुन : डब्लू फिशर, कनारा मजिस्ट्रेट ने मंगलौर से अपने पत्र में चीफ सेक्रेटरी मद्रास को संबोधित करते हुए लिखकर स्पष्ट किया कि दीपूजी राणे का गोवा में अकथनीय प्रभुत्व है और कनारा ज़िले में उनके विशाल संबंध हैं (स्वयं-पत्र. 52 दिनांक मंगलौर 20 जुलाई 1858 यहाँ यह बताया जा सकता है कि फोन्द कर्मचारी जो 2 फरवरी 1858 की रात को निकल भागे है; उन्होंने समस्त तटीय क्षेत्र में सावन्तवाडी से कारावाड तक विप्लव उकसाना प्रारम्भ कर दिया है। इस प्रकार राणे की फौजी टुकडियो ने सावन्तवाडी में, तथा फडनिस व सिद्दी टुकडीयों ने कारवाड में तथा सूपा में ब्रिटिश तथा पुर्तगाली संयुक्त शक्ति के विपरीत एक-दूसरे को सहायता देना और समर्थन देना प्रारम्भ कर दिया।

अन्त में पुर्तगाली सरकार ने, दीपूजी राणे के साथ 2 जून, 1855 को एक संधि की। इस संधि के द्वारा दाँव पंचायतों के सभी अधिकार पुनर्जीवित हो गए; और क्रिस्तानी धर्म के निदेश का कार्यान्वन वापिस कर लिया गया। उन सभी लोगों के प्रति जिन्होंने राजद्रोह में भाग लिया था, राजनीतिक क्षमादान स्वीकृत हो गया तथा स्वयं दीपूजी को गणवेश, खडग केपीटाओ कप्तान की उपाधि से अलंकृत किया गया। पुर्तगाली सरकार के गजट में संधि का मूललेख प्रकाशित हुआ (वोलिटिन डो गोर्वनो) जून 15, 1855 दीपूजी की ओर से स्वयं दीपूजी ने ही हस्ताक्षर किए अप्पाजी राणे देशाई (दीपूजी के भतीजे) ने, माटग्राम के वाला देशाई ने करोड़ के वावे सावन्त मंटोडकर मवासी के खेमलों गाँवकर तथा विथे गाओन्स केरकर ने हस्ताक्षर किए। कैसे भी संधि की शर्तों का पुर्तगालियों ने सच्चाई से पालन नहीं किया। उन्होंने अपने नियंत्रणात्मक तरीके पुन: प्रारंभ कर दिए, उस पर दीपूजी राणे ने अपनी 1856 में नवीनीकृत प्रतिक्रिया शक्ति से प्रारंभ कर दी। विद्रोह में उनका मोलिगम् के तुकाराम शेणवी वरचूलो, राम शेणवी वरचूलो विडलपुर के रावजी दुभाषनि वहीं ; नारायण दुभाषिन सुरला के सननलेलियम गोविन्द नीलकण्ठ शेणवी अंत भार वारवै ; तथा अमोना के रावलू रामचंद्र शेणवी ने साथ दिया जिन्होंने कि सनक्लेलिम, विचोलिम, तथा पडौसी क्षेत्रों में कार्य किया। इनमें से रामा रावजी नारायण गोविन्दा अप्रैल 1857 को गिरफ़्तार कर लिए गए और उन पर अभियोग चलाया गया। दीपूजी ने अपने 26 मई 1857 के चंबे पत्र में वायसराय गोवा को संबोधित करते हुए बताया कि गोवा वासियों की क्या दयनीय दशा थी जिसके कारण वे पुर्तगालियों के शासन से नियंत्रित एवं सीमित हो गए थे। (यह पत्र मूल रूप से मोदी लिखावट में मराठी में लिखा गया, गोवा राज्य के पुरा-अभिलेखागार पणजी, में प्राप्य है; इसे पूर्ण रूपेण डॉ. पी. एस. पसुरलेन्सर ने 'भारत मित्र' के सित्मबर 1936 के अंक में छापा था।(रीवन, गोवा) और पुन: एम. एच. सरदेसाई के गोवा दामन, दिव स्ववातंत्र्य लढयाचा इतिहास (प 2. 171-174 में मुद्रित हुआ।)

मई 1857 में, स्वतंत्रता युद्ध में भारत में अन्य राज्यों के साथ दीपूजी राणे ने अपनी गतिविधियाँ भी तीव्र कर दीं। पुर्तगाली गवर्नर जनरल, गोआ, में स्वातनत्रय युद्ध के प्रसार परिणामों से अत्यधिक निराश हो गए। भारत की युद्ध स्थिति पर अपनी रपट में लिप्टअधिकारीयों को 5 अगस्त 1857 को यह उल्लेख किया कि गोवा में पुर्तगाली शासन पाताल में पहुँचने के कगार पर है ; ब्रिटिश सरकार के लोग युरोप से फ़ौजें बुलाकर इस संकट का मुक़ाबला कर रहे हैं लेकिन गोवा में एक भी (युरोपीय) पुर्तगाली सिपाही नह़ीं आया और गोवा में दलों का 9/10 भाग स्थानीय व्यक्तियों की भर्ती से निर्मित है अत: यदि पडौसी ब्रिटिश क्षेत्र में विद्रोह भड़कता है; दूसरे दिन यह सतारी तक फैल जाएगा और तीसरे दिन यह समस्त गोवा को निगल जाएगा अत:उन्होंने लिस्वन के अधिकारियों से प्रार्थना की कि कुछ युरोपीय फ़ौजी दल तुरंत भेज दिए जाए। (को रसपोन्डेसिया पेरा ए रेटनो 1857-58 एच. ए. जी. एच. एस. 21 वी 23 वी : शिरोडकर इनसरजेन्सी पृ. 816) पुन: उसकी युद्ध स्थिति रपट में दिनांक 22 अगस्त 1857 उन्होंने लिस्वन के अधिकारियों को लिखा कि भारत में अपनी नई विद्रोही सफलताओं के समाचारों से साहस पाकर दीपूजी और उनके अनुयायी स्वयं तैयारी कर रहे थे और यदि राजद्रोह भड़कना प्रारंभ होता है, तो वह नहीं जानते कि किस प्रकार पुर्तगाली सरकार इसे बुझा सकेगी (आईक्डि 41 वी, 42 वी)

दीपूजी राणे की गतिविधियाँ तुरंत ही पडौसी ब्रिटिश क्षेत्र में फैल गई। उन्होंने और उनके अनुयाइयों ने वहाँ अत्यधिक प्रभाव अर्जित कर लिया। दूसरी तरफ़ ब्रिटिश अधिकारियों को यह विश्वास था कि रामजी श्रीष्ठ, जो 27वी उत्तर भारतीय पलटन के नेता थे, कोल्हापुर में 31 जुलाई 1857 को फ़ौजी विद्रोह किया, गोवा राज्य में अपने अनुचरों के साथ निकाल भागे। जे. डी. रोविन्सन विशेष आयुक्त कनारा, ने 14 अगस्त 1857 को पुर्तगाली गवर्नर जनरल को यह प्रार्थना करते हुए लिखा कि भगेडू सिपाही तथा अन्य विद्रोही लोग गोवा क्षेत्र के रास्ते से फ़क़ीर आदि के वेश में गुज़र सकते हैं; अत: किसी भी शंकायुक्त व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया जाना चाहिए तथा संबंधित ब्रिटिश क्षेत्र के दंडाधिकारी अभियोजन तथा दंड के लिए भेज देना चाहिए। इस प्रकार स्वातंत्र्य युद्ध गोवा और ब्रिटिश क्षेत्रों में एक दूसरे से मिश्रित हो गया तथा पुर्तगाली और ब्रिटिश अधिकारियों में उनको दबाने में सहयोग बढ गया। बेलगाव रत्नागिरी, कोल्हापुर व सतारा से विप्लव को दबाने के लिए कुछ ब्रिटिश सैन्य-अंश गोवा से होकर गुज़ारे।

दीपूजी राणे अपने विरोधियों के लिए गिरफ़्तारी के लिए कठिन और शक्तिशाली होते जा रहे थे। उनका प्रभाव पुर्तगाली और ब्रिटिश क्षेत्र में बढ रहा था। जे.डी. राविनसन्स ने मद्रास के चीफ़ सेक्रेटरी को जून 1858 में लिखकर सूचना दी कि दीपूजी राणे को शक्तिहीन बनाने के लिए पुर्तगालियों ने असफल प्रयास किए। (उन्हीं का पत्र सन्. 326 दिनांक केम्प जग्गलपेट 4 जून 1858) पुन : डब्लू फिशर, कनारा मजिस्ट्रेट ने मंगलौर से अपने पत्र में चीफ सेक्रेटरी मद्रास को संबोधित करते हुए लिखकर स्पष्ट किया कि दीपूजी राणे का गोवा में अकथनीय प्रभुत्व है और कनारा ज़िले में उनके विशाल संबंध हैं (स्वयं-पत्र. 52 दिनांक मंगलौर 20 जुलाई 1858 यहाँ यह बताया जा सकता है कि फोन्द कर्मचारी जो 2 फरवरी 1858 की रात को निकल भागे है; उन्होंने समस्त तटीय क्षेत्र में सावन्तवाडी से कारावाड तक विप्लव उकसाना प्रारम्भ कर दिया है। इस प्रकार राणे की फौजी टुकडियो ने सावन्तवाडी में, तथा फडनिस व सिद्दी टुकडीयों ने कारवाड में तथा सूपा में ब्रिटिश तथा पुर्तगाली संयुक्त शक्ति के विपरीत एक-दूसरे को सहायता देना और समर्थन देना प्रारम्भ कर दिया।

केरी के अप्पाजी राणे वाला देसाई, मारागाम
वेवे सावन्त मन्टोडकर भोसलें, कोठोर,
मवासी के खेमलों गाँवकर
विठे गॉअन्स केरकर
मौलिनगम के तुकाराम शेणवी वरचुलो
अन्तु माट रववै, सुरला
अमोना के रोवलू रामचन्द्र शेणवी ,
रामजी शिरसाट
(27वीं उत्तर भारत पल्टन, कोल्हापुर के नेता)

4. शहीद
बबलू कस्मबालकर
(5 दिसम्बर 1859 की रात में गोवा के एक प्रतिरोध में मारे गये।)

5. कैदी
1. दीपूजी राणे
(अक्टूबर 1858 में आत्म-समर्पण)
रामशेणवी वरचुलो
(अप्रैल 1857 में गिरफ्तार हुए)
रावजी दुभाषी
(अप्रैल 1857 में गिरफ्तार हुए)
नारायण दुभाषी
(अप्रैल 1857 में गिरफ्तार हुए)
गोविन्द नीलकंठ शेणवी
(अप्रैल 1857 में गिरफ्तार हुए)

2 (पुर्तगाली लेफ्टीनेंट कर्नल जोकाओ धिथोडोरी, डेशिल्वा ने ब्रिटिश आयुक्त कनारा को पत्र दिनांक पोन्डा 30 दिसम्बर 1859 (स.7) क्रान्तिकारियों के नामों से सम्बन्धित और किस प्रकार उन्हें समाप्त किया गयाः)

(निम्न में से एक नाम करमबालकर बाबलू को एक मुठभेड़ में 5-12-1959 को मार डाला गया; उनमें से अनेक जो पकड़ लिये गये वह बाद में जीवन भर के लिये समुद्र-पार निवर्सित कर दिये गये।

(अ) ब्रिटिश प्रजाजन

भंडारी गोपाल
(गिरफ्तारी के लिये 100 रुपये का इनाम घोषित, 5-7-1859 को आत्म-समर्पण।)
गणव शेणवी
(गिरफ्तारी के लिये 1000 रुपये का इनाम घोषित, भगोडे)
करम बालकर बाबलो
(गिरफ्तारी के लिये 100 रुपये क इनाम घोषित, एक कार्यवाही में 5-12-1959 की रात में मार डाला गया)
गोंगलो
(गिरफ्तारी के लिये 100 रुपये का इनाम घोषित, पुर्तगालियों को 5-12-1859 को गोवा में आत्म-समर्पण।)
अनामन गोमकर
(गिरफ्तारी के लिये 1000 रुपये का इनाम घोषित, गोवा के प्रमुख नेता; पुर्तगालियों के समक्ष 29 नवम्बर 1959 को आत्म समर्पण।)
सिदी वेनाउ
(गिरफ्तारी के लिये 1000 रुपये का इनाम घोषित, भगोड़ा)
बाका
(गिरफ्तारी  के लिये 500 रुपये का इनाम घोषित, भगोड़ा)
विट्ट गौउली
(भगोड़ा)
गोपाल
(भगोड़ा)

(ब) पुर्तगाली प्रजाजन

फोन्टू गुकाव
(गोवा के एक नेता; उनकी गिरफ्तारी के लिये 500 रुपये का इनाम घोषित था; उन्होंने गोवा में पुर्तगाली सरकार के समक्ष 29-11-1859 को आत्म समर्पण दिया।)

नागा
(गिरफ्तारी के लिये 100 रुपये का इनाम घोषित, पुर्तगाली सरकार के समक्ष 30-11-1859 को गोवा में आत्म-समर्पण किया।)
मोरवा देसाई
(पुर्तगाली सरकार को गोवा में 5-12-1859 को आत्म-समर्पण।)
वावी देसाई
(पुर्तगालियों को गोवा में 5-12-1859 को आत्म-समर्पण।)
दाजी सावन्त
(गिरफ्तारी के लिये 100 रुपये का इनाम घोषित, पुर्तगालियों को गोवा में 5-12-1859 में आत्म-समर्पण।)
रोगलो नायक
(गोवा में 30-11-1859 को गिरफ्तार।)
वारकेलो कुदतीकर
(गोवा में 4-12-1859 को गिरफ्तार।)
रामनाथ संतपालकर
(गोवा में 5-12-1859 को गरिफ्तार।) लक्ष्मण कोपादेकर
गुर-गुरो नानुजकर
(गोवा में 5-12-1859 को गिरफ्तार।)
गोविन्द नायक
(गोवा में 5-11-1859 को गिरख्तार।)
मोना सत पालकर
(गोवा में 30-11-1859 को गिरफ्तार।)
फोन्दू गाउदो
(पुर्तगालियों को गोवा में 6-12-1859 को आत्म-समर्पण।)
काम कलेन्दर
(पुर्तगालियों को गोवा में 5-12-1859 को आत्म-समर्पण।)

6.स्त्रोत

तमिलनाडू पुरा-अभिलेखागार, मद्रास
फोर्ट (किला) सेंटाजार्ज, न्यायिक परामर्श, 8-6-1859 ; 22-9-2858, 13-7-1857 ; 3-8-1858 ; 21-9-1858 ; 12-10-1858 ; 9-11-1858 ; 30-12-1858 ; 18-2-1860।

केन्द्रीय क्षेत्रों का गजेटियर, गोवा, दामन दीव
जिला गजेटियर भाग-1 गोवा पृ. 187-189
एलोप्स मन्डेस-ए इंडिया पोर्यूगुएजा ग्र. 2 पृ. 1-6, एम. जे. गेवारियल डे सल्दानाह हिस्टोरिया डे-गोवा ग्र.. 1-पृ. 312-323.
एम. एच. सरदेसाई, गोवा, दामन, दीप स्वातंत्र्य लढयाचा इतिहास (मराठी में) ग्र. 1 पृ. 167-174.
पी. पी. शिरोडकर सिद्दी वास्वियन मर विप्लव उत्तरी कनारा, पृ.2-4. पी. पी. शिरोडकर इनसरजेन्सी, पश्चिम भारत में गदर और पुर्तगाली (पृ = 801-824)
प्रतिमा कुमार-गोवा में राजनीतिक जीवन, लोक गीतों के सन्दर्भ में पृष्ठ 237.

 

क्रांति १८५७

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